कुछ यात्राएं अनंतहीन होनी चाहिए, जिनका कभी अंत ना हो….
जैसे तुम्हारा साथ, तुम्हारी हंसी, तुम्हारी खुशबू, तुम्हारे एहसास….
लेकिन इन यात्राओं पर विराम लग जाता है, मनबेबस हो जाता है….
उस समय अचानक ट्रेन के हॉर्न की तरह आ जाती है, जब तुम्हारी आवाज….
क्यों परेशान हो तुम, यात्रा में पड़ाव आता है, इसका मतलब यात्रा खत्म नहीं हुई….
एक नई यात्रा शुरू होगी और हर यात्रा में मैं तुम्हारे साथ रहूंगी….
विश्वास ही नहीं होता कितनी सरलता से तुम कह देती हो सब कुछ….
जबकि तुम्हें तो अपने भावों को व्यक्त करना भी नहीं आता….
तुम कितनी समझदार और मैं ठहरा नादान, हैरान और परेशान….

मुझे लगा कि यात्रा खत्म होने से जीवन खत्म हो जाएगा….
लेकिन तुमने जब ये बतलाया, यात्रा के साथ पडाव ही तो है आया, जीवन नहीं खत्म हुआ….
मेहनत करो एक नई यात्रा की शुरुआत करो, मैं हूं ना तुम्हारे साथ….
तुम्हारा केवल ये कह देना तुम हो मेरे साथ, दे देता है जैसे ईंधन मुझे नई यात्रा, नए सपनों और नए जीवन का….
तुम्हें नहीं पता तुम्हारा ये कहना, तुम्हारा स्पर्श करना मन के भावों को जगा देता है….
मुझे अनंत यात्रा पर जाने का भी भय खत्म कर देता है….
तभी तो तुम्हें मैं कहता हूं, कभी तुम मां की तरह लगती हो, कभी दोस्त और कभी जीवन की सबसे मजबूत साथी….
जिसके होने से अब मुझे कुछ भी असंभव नहीं लगता….
हम दूर बहुत दूर रहते हैं तुमसे, लेकिन मन के भावों से कभी दूर ही नहीं जा पाए तुझसे….
ईश्वर को धन्यवाद देता हूं, की ऐसे लोगों से मुलाकात करवाया….
साथ ही तुम्हारा भी धन्यवाद है की तुमने इतनी मजबूत और ना मिटने वाली यादों के साथ हमें अपनी पनाहों में सजाया….
।। अनूप कुमार त्रिपाठी।।

