जब से तुम चले गए हो
बारिश होने लगी है।
काले-काले बादल
तुम्हारे बालों की कमी
पूरी नहीं कर पा रहे।
काली घटा भी तुम्हारे
आंखों की कमी
पूरी नहीं कर पा रही।
बूदे भी तो तुम्हारे
चमकते पसीने के सामने
फीकी पड़ गई हैं।
मेरी आंखें तुम्हें
यही कही ढूंढ रही हैं।

प्रकृति में चारों तरफ हरियाली है
जैसे तुमने अपनी बाहे
मेरे सामने फैला ली है।
मैं कहां-कहां तुमको
नहीं ढूंढ रहा हूं।
कितना पागल हूं मैं
तुम दूर कहां हो
अपने भीतर झाकु तो
तुम आराम से बैठे मिलोगे।
जैसे काले-काले बादलों के बीच
में चमकती हुई बिजली।
।। अनूप कुमार त्रिपाठी।।

